Friday, March 30, 2007

वो लुम्हे

अजीब होती है प्यार की
दास्तान
उसके साथ नीभाये कुछ
लम्हें
कुछ सोचने को मजबूर कर देती है
आंखें बंद हो जाती है और सीर्फ बस
सीर्फ उसका ही चेहरा सामने दीखता है
ऐसा लगता है जैसे वो अपने तरफ
खीच रही है ,उसकी आदाये मुझे उसमे डूबने को
मजबूर कीये जा रही है
मीलने की प्यास बढती ही जा रही है
DIL तो कर्ता है कि सामने जाकर
कह दु उस शोख अदा वाली चंचल हसीना को
जो मुझे इतना प्यार करती है
क्या मुझे उसे थोडा भी
प्यार करने का हक नही...............

1 comment:

उन्मुक्त said...

सुन्दर कविता है