दारीन्दा है जमाना यहा क्या वफ़ा होगी
सामने आती हो तो दिल मुस्कुराता है पर आंखें नम हो जाती है
क्या कहूं इस ज़माने से, जो हँसा नहीं पर रुला ज़रूर जाती है,
तुम आती हो जैसे सुनहरे बादल आते है,पर ये हवाए कहॉ बारिश होने देती है,
प्यासा हूँ तेरी नज़रों का प्यासा ही रहूँगा,
अक्स के मोतियों को मत गिराना,
मैं तुम्हें
प्यार करता ही रहूँगा.
1 comment:
nice poem sahil bhaiya,keep it up.
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